Sunday 19 April 2015

अधर्म निभाते धर्म-पुजारी


धर्म पे संकट आई भारी
अधर्म निभाते धर्म-पुजारी
करते प्रहार उन भले जनों पर
जो होते लाचार सा अक्सर
बोलते उनसे दंभ की भाषा
बाहुबली बन तोड़ते आशा
देते कठिन दण्ड की मार
तोड़कर उनके घर व द्वार
संप्रदाय का जहर फैलाकर
जांत-पात का कहर दिखाकर
धर्म-परिवर्तन का जाल पसारे
कुछ ना सोचे कुछ ना विचारे
सभ्यता से करते खिलवाड़
विषाद बढाते हैं बार-बार
शिक्षित-शिष्ट-उद्द्योगी बनते
विवेकपूर्ण सा कार्य जो करते   
दहशत को ना नीति बनाते  
धर्म-सम्मत वो रीति निभाते
धर्म कभी न ऐसी होती  
जो मन में दुर्भावना लाती
ना ही कभी हिंसा को बढाती
ना कहीं अत्याचार कराती
ना ही मजहब ऐसा होता
जो पथहीन दिशा को जाता
धर्म में वो पावनता होती
लोक-मानस का मर्म समझती
इस देश की अनुपम संस्कृति
दी है सदा अनमोल विभूति
धर्म हमारी धरोहर है  
       संस्कार की सरोवर है.       
        

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