Friday 3 June 2016

सावित्री – सत्यवान


सावित्री-सत्यवान की
अनमिट है कहानी
नए रूप में परिवर्तित है
उनकी कथा पुरानी.
सावित्री की कथा ये कहती
अद्भुत है नारी की शक्ति
श्रद्धा-भक्ति तप की मूर्ति
अथक मनोबल थी सावित्री
इस महाकाव्य के सारे पात्र
सत्य-गर्भित है पूर्णतः आज    
प्रखर-प्रचंड ओज के साथ
लोक-मंगल सुख की सौगात
बुद्धि-विवेक से थी वो उन्नत
धीर-गंभीर-स्थिर सी मस्तक
सवितादेव से ज्योति लेकर
वो प्राणों की पुत्री बनकर
सृष्टि की वो शक्ति बनकर
अवतरित हुई थी धरती पर
सत्यवान की जीव आत्मा
ईश्वर की थी गूढ़ प्रेरणा
द्युत्मसेन का वो अंधापन
मानव का है अँधा सा मन
अपनी ऊर्जा-बल को खोकर
व्यक्ति भटकता संसार में दर-दर
अश्वपति का पुत्र को पाना
नव जीवन को पुनः बसाना
सावित्री का तीन वरदान
साधना का है तीन आयाम
पहला – जीवन में सुचितापन
दूसरा – जीव स्वरुप का चिंतन
तीसरा – खुद में हो सौ सद्गुण
दर्प-मोह का हो ना रुदन
बरगद के पेड़ों का पूजन
प्रकृति-प्रेम का सुन्दर दर्शन
सावित्री का ये मर्म है जाना
पूजा-प्रकृति-धर्म पहचाना
अध्यात्म तत्व से की उर आलोकित
मानव आत्मा को करके ज्योतित
भारत की शाश्वत गौरव बन
हरती जन-मन का भव-भय-भ्रम .               

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